प्राकृतिक चिकित्सा : प्राकृतिक चिकित्सा की विभिन्न विधियाँ
प्राकृतिक चिकित्सा :
प्राकृतिक चिकित्सा स्वस्थ जीवन बिताने की एक कला एवं विज्ञानं है। यह ठोस सिद्धांतो पर आधारित एक औषधि रहित रोग निवारक पद्धिति है। स्वास्थ्य, रोग,तथा चिकित्सा सिद्धांतो के सम्बन्ध प्राकृतिक चिकित्सा एक अमूल्य धरोहर है।प्राकृतिक चिकित्सा एक अति प्राचीन विज्ञानं है। वेदो व अन्य प्राचीन ग्रंथो में हमे अनेक सन्दर्भ मिलते है। "विजातीय पदार्थ का सिंद्धांत ", "जीवनी शक्ति सम्बन्धी अवधारणा " तथा अन्य धारणाये जो प्राकृतिक चिकित्सा को आधार प्रदान करती है , प्राचीन ग्रंथो से ही उपलब्ध है तथा इस बात का संकेत करती है कि इनका प्रयोग भारत में व्यापक रूप से प्रचलित था।
प्राकृतिक चिकित्सा व अन्य चिकित्षा प्रणालियो में मुख्य अंतर् यह है कि प्राकृतिक चिकित्सा का दृष्टिकोण समग्रता का है जबकि अन्य चिकित्षा पद्धतिया विशिष्टता का दृष्टिकोण अपनाती है। प्राकृतिक चिकित्सा प्रत्येक रोग के अलग कारण तथा उसकी विशिष्ट चिकित्षा में विश्वास नहीं रखती अपितु अप्राकृतिक रहन सहन, विचार करने,सोने-जगाने, कार्य करने व यौन सम्बन्धी आचरण में विषमता आदि कारणों को ही रोगो के मुख्य कारण के रूप में स्वीकार करती है। साथ ही यह वातावरण सम्बन्धी उन कारणों पर भी ध्यान रखती है जो शरीर के संतुलन पर दुष्प्रभाव डालकर उसे दोष युक्त, निर्बल तथा विजातीय द्रव्यों से युक्त कर देते है। चिकित्षा में भी उन सब कारणों को सुधारने में प्राथमिकता देती है। और शरीर को संतुलित अवस्था में ले जाने का कार्य करती है।
प्राकृतिक चिकित्सा की परिभाषा
प्राकृतिक चिकित्सा व्यक्ति को उसके शारीरिक, मानसिक , नैतिक तथा आध्यात्मिक तलो पर प्रकृति के रचनात्मक सिद्धांतो के अनुकूल निर्मित करने की एक पद्धति है। इसमें स्वास्थ्य संवर्धन, रोगो से बचाव, रोग निवारण और पुनर्स्थापना कराने की अपूर्व क्षमता है।
प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांत
प्राकृतिक चिकित्सा के मुख्य सिद्धांत इस प्रकार है :१. सभी रोग,उसके कारण, एवं चिकित्षा एक है। चोट - चपेट और वातावरणजन्य परिस्थितियों को छोड़ कर शेष सभी रोगो का मूल कारण एक ही है। और इनका इलाज भी एक है। ( शरीर में विजातीय पदार्थो के संग्रह से रोग उत्पन्न होते है और शरीर से उनका निष्कासन ही चिकित्षा है )
२. रोग का मुख्य कारण जीवाणु नहीं है। जीवाणु शरीर में जीवनी शक्ति के हास् आदि के कारण विजातीय पदार्थो के जमाव के पश्चात तब आक्रमण क्र पाते है जब शरीर में उनके रहने और पनपने लायक अनुकूल वातावरण उत्पन्न हो जाता है। अत: मूल कारण विजातीय पदार्थ है जीवाणु नहीं। जीवाणु द्वितीय कारण है।
३. तीव्र रोग चूँकि शरीर के स्व-उपचारात्मक प्रयास है अत: हमारे शत्रु नहीं मित्र है। जीर्ण रोग तीव्र रोगो के गलत उपचार और दमन के फल स्वरुप पैदा होते है।
४. प्रकृति स्वयं सबसे बड़ी चिकित्सक है। शरीर में स्वयं को रोगो से बचाने व अस्वस्थ हो जाने पर पुन: स्वास्थ्य प्राप्त करने की क्षमता विधमान है।
५.प्राकृतिक चिकित्सा में चिकित्सा रोग की नहीं बल्कि रोगी की होती है।
६. प्राकृतिक चिकित्सा में रोग निदान सरलता से सम्भव है। किसी आडंबर की आवश्यकता नहीं पड़ती। उपचार से पूर्व रोगो के निदान के लिए लम्बा इंतज़ार भी नहीं करना पड़ता।
७. जीर्ण रोगो से ग्रस्त रोगियों का भी प्राकृतिक चिकित्सा में सरलता पूरक तथा अपेक्षा कृत कम अवधि में इलाज होता है।
८. प्राकृतिक चिकित्सा से दबे हुए रोग भी उभर क्र ठीक हो जाते है।
९. प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा शारीरिक, मानसिक, समाजिक (नैतिक ) एवं आध्यात्मिक चारो पक्षों की चिकित्सा एक साथ की जाती है।
१०. विशिष्ठ अवस्थाओं का इलाज करने की बजाय प्राकृतिक चिकित्सा पुरे शरीर की चिकित्सा एक साथ करती है।
११. प्राकृतिक चिकित्सा में औषधियों का प्रयोग नहीं होता। प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार "आहार ही औषधि" है।
प्राकृतिक चिकित्सा की विभिन्न विधियाँ
मनुष्य के शरीर में स्वयं रोगो की अपूर्व शक्ति है। यह पांच तत्वों का बना है जिनका असंतुलन ही रोग उतपन्न करने का मुख्य कारण है। इन्ही तत्वों - मिटटी, पानी, धुप,हवा और आकाश द्वारा रोगो की चिकित्सा प्राकृतिक चिकित्सा कहलाती है। प्राकृतिक चिकित्सा में सामान्य रूप से प्रयोग में लायी जाने वाली चिकित्सा और निदान की विधियाँ निम्न है :
आहार चिकित्सा
इस चिकित्सा के अनुसार आहार को उसके प्राकृतिक या अधिक से अधिक प्राकृतिक रूप में लिया जाना चीहिए। मौसम के ताजे फल , ताज़ी हरी पत्तेदार सब्जियाँ तथा अंकुरित अन्न इस द्रष्टि से उपयुक्त है। इन आहारों को मोटे तौर पर तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है -
१. शुद्धि कारक आहार : रस - निम्बू, खटटे रस, कच्चा नारियल पानी, सब्जियों के सुप, छाछ , गेहूँ घास का रस आदि।
२. शांतकारक आहार : फल सलाद, उबली /भाप में बनायीं गयी सब्जियाँ, अंकुरित अन्न, सब्जियों चटनी आदि।
३. पुष्टि कारक आहार : सम्पूर्ण आटा , पोलिश किया हुआ चावल, कम दाले , अंकुरित अन्न, दही आदि।
क्षारीय के कारण ये आहार स्वास्थ्य उन्नत करने के शरीर की शुद्धि करण क्र रोगो से मुक्त करने में भी सहायक सिद्ध होते है। इसलिए आवश्यक है कि इन आहारों का आपस में उचित मेल हो। स्वस्थ रहने के लिए हमारा भोजन 20 % अम्लीय और 80 % क्षारीय अवश्य होना चाहिए। अच्छा स्वास्थ्य बनाये रखने के इच्छुक व्यक्ति को संतुलित आहार लेना चाहिए। प्राकृतिक चिकित्सा में आहार को ही मुलभुत औषधि माना जाता है।
उपवास चिकित्सा
स्वस्थ रहने के प्राकृतिक तरीको में उपवास एक महत्वपूर्ण तरीका है। उपवास में प्रभावी परिणाम प्राप्त करने के लिए मानसिक तैयारी एक महत्वपूर्ण क्रिया है। पश्चात एक या दो दिन का उपवास किसी को भी कराया जा सकता है।उपवास के बारे में प्राकृतिक चिकित्सा का मानना है कि यह पूर्ण शारीरिक और मानसिक विश्राम की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के दौरान पाचन प्रणाली क्योंकि विश्राम में होती है अत: भोजन का पाचन करने वाली प्राण ऊर्जा पूर्ण रूप से निष्कासन की प्रक्रिया में जाती है। यही उपवास का उदेश्य भी है। मस्तिष्क एवं शरीर के विकारो को दूर करने के लिए उपवास एक उत्कृष्ट चिकित्सा है। मंदाग्नि , कब्ज , गैस आदि पाचन संबंधी रोगो, दमा-श्वास , मोटापा, उच्च रक्तचाप तथा गठिया आदि रोगो के निवारणार्थ उपवास का परामर्श दिया जाता है।
मिटटी चिकित्सा
मिटटी की चिकित्सा बहुत ही सरल और प्रभावी है। इसके लिए प्रयोग में लायी जाने वाली मिटटी साफ सुथरी और जमीन से 3-4 फ़ीट निचे की होनी चाहिए। उसमे किसी तरह की कोई मिलावट कंकर पत्थर या रासायनिक खाद वगरैह न हो।शरीर को शीतलता प्रदान करने के लिए मिटटी चिकित्सा का प्रयोग किया जाता है। मिटटी शरीर के दूषित पदार्थो को घोलकर एवं अवशोषित कर अंतत: शरीर के बाहर निकाल देती है। मिट्ठी की पट्टी तथा मिटटी से स्नान इसके मुख्य उपचार है। विभिन्न रोगो जैसे कब्ज, तनावजन्य सिरदर्द, उच्च रक्तचाप तथा चर्मरोगो आदि में इसका प्रयोग सफलता पूरक किया जा सकता है। सिरदर्द तथा उच्च रक्तचाप की स्थिति में माथे पर मिटटी की पट्टी रखी जाती है।
जल चिकित्सा
मिटटी की तरह जल को भी चिकित्सा का सवार्धिक प्राचीन साधन माना जाता है। स्वच्छ , ताजे एवं शीतल जल से अच्छी तरह स्नान करना जल चिकित्सा का उत्कृष्ट रूप है। इस प्रकार के स्नान से शरीर के सभी रंध्र खुल जाते है। शरीर में हल्कापन और स्फूर्ति आती है। शरीर के सभी संस्थान और मासपेशिया सक्रिय हो जाती है तथा रक्त संचार भी उन्नत होता है। विशेष अवसरों पर नदी , तालाब तथा झरने में स्नान करने की प्रथा वस्तुत: जल चिकित्सा का ही एक प्राकृतिक रूप है। जल चिकित्सा के अन्य साधनो में कटिस्नान, एनिमा , गर्म-ठंडा सेंक , गर्म पाद स्नान , रीढ़ स्नान , भाप स्नान, पूर्ण टब स्नान, गर्म-ठंडी पट्टियां, पेट , छाती तथा पैरो की लपेट आदि आते है जो इसके उपचारात्मक प्रयोग है। जल चिकित्सा का प्रयोग मुख्यत:स्वस्थ रहने के साथ साथ विभिन्न रोगो के निवारणार्थ किया जाता है।
मालिश चिकित्सा
मालिश भी एक प्राकृतिक चिकित्सा की एक विधि है तथा स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है। इसका प्रयोग अंग प्रत्यंगो को पुष्ट करते हुए रक्त संचार को उन्नत करने में होता है। सर्दी के दिनों में पुरे शरीर की मालिश के बाद धुप स्नान करना सदैव स्वस्थ एवं क्रियाशील बने रहने का एक चिर परिचित तरीका है। यह सभी के लिए लाभकारी है इससे मालिश एवं सूर्य किरण चिकित्सा दोनों का लाभ मिलता है। रोग की स्थिति में मालिश के विशिष्ट प्रयोगो द्वारा आवश्यक चिकित्सकीय प्रभाव उतपन्न करके विभिन्न रोग लक्षणों को दूर किया जाता है। जो व्यायाम नहीं क्र सकते उनके लिए मालिश एक विकल्प है। मालिश से व्यायाम के प्रभाव उतपन्न किये जा सकते है।
सूर्य किरण चिकित्सा
सात रंगो से बनी सूर्य की किरणों के अलग अलग चिकित्सीय महत्व है। ये रंग है - बैंगनी , नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी, तथा लाल। स्वस्थ रहने तथा विभिन्न रोगो के उपचार में ये रंग प्रभावी ढंग से कार्य करते है। रंगीन बोतलों में पानी तथा तेल भर कर निश्चित अवधि के लिए सूर्य की किरणों के समक्ष रखकर तथा रंगीन शीशो को सूर्य किरण चिकत्सा साधनो के रूप में विभिन्न रंगो के उपचारार्थ प्रयोग किया जाता है। सूर्य किरण चिकित्सा की सरल विधिया स्वास्थ्य सुधार की प्रकिर्या में प्रभावी तरीके में मद्द्त करती है।
वायु चिकित्सा
अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्वच्छ वायु अत्यंत आवश्यक है। वायु चिकित्सा का लाभ वायु स्नान के माध्यम से उठाया जा सकता है। इसके लिए कपड़े उतार कर या हल्के कपड़े पहन कर किसी स्वच्छ एकांत स्थान पर जहाँ पर्याप्त वायु हो , प्रतिदिन टहलना चाहिए। कई रोगो में चिकित्सक भी वायु स्नान की सलाह देते है। प्राणायाम का भी वायु चिकित्सा की एक विधि के रूप में चिकित्सात्मक प्रयोग किया जाता है।
निदान की विधियाँ
रोग के मूल कारणो को जानने के लिए प्राकृतिक चिकित्सक दिनचर्या, ऋतुचर्या, आहार कर्म से लेकर वंशानुगत कारणो तक का विश्लेषण करते है। तात्कालिक रोगिक अवस्था को ज्ञात करने के लिए मुख्यत: निम्न दो नैदानिक विधियाँ प्रयोग की जाती है -१. कननिका निदान : पूरा शरीर कननिका के विभिन्न क्षेत्रो में प्रतिबिम्बित होता है। उनके विश्लेषण द्वारा रोगो की दशा का अच्छी तरह से निदान किया जा सकता है।
२. आकृति निदान : शरीर के विभिन्न अंगो में विजातीय पदार्थो का जमाव शरीर की आकृति से परिलक्षित होता है। शरीर के विभिन्न अंगो में रोगो की स्थिति का निदान उनके अवलोकन से किया जा सकता है।
प्राकृतिक चिकित्सा के कुछ मुख्य उपचार
- मिटटी की पट्टी
- मिटटी स्नान
- सूर्य स्नान
- गर्म और ठंडा सेंक
- कटि स्नान
- मेहन स्नान
- पाद स्नान
- वाष्प स्नान
- पूर्ण टब स्नान
- रीढ़ स्नान
- गीली चादर लपेट
- छाती की पट्टी
- पेट की पट्टी
- घुटने की पट्टी
- एनिमा
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