गर्भावस्था एवं सामान्य प्रसव के लिए प्राकृतिक चिकित्सा संबंधी सुझाव
मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य
गर्भावस्था एक ऐसा महत्वपूर्ण समय है जब माँ एवं गर्भस्थ शिशु को सर्वाधिक देखभाल की आवश्यकता होती है। गर्भधारण के पश्चात माँ को शारीरिक तथा मानसिक कई स्वास्थ्य समस्याओ का सामना करना पड़ता है। समय रहते निराकरण न होने पर उसका दुष्प्रभाव नवजात शिशु पर भी पड़ सकता है। योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा पद्धितियों को सुरक्षित, सहज-सुलभ और दुष्प्रभाव रहित माना जाता है, इन समस्याओ को ठीक करने में सहायता पुँहचाती है। इतना ही नहीं गर्भधारण से लेकर प्रसव तक की सभी अवस्थाओं में एवं उसके पश्चात प्रसव प्रक्रिया के सामान्य ढंग से होने में योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा पद्धितियाँ सहायता प्रदान करती है।
गर्भावस्था एवं सामान्य प्रसव के लिए योग चिकित्सा सम्बन्धी सुझाव
आसान :वज्रासन, सुखासन, ताड़ासन, श्वासन आदि आसान एवं आरामदायक आसनो का अभ्यास करे।
प्राणायाम:
शुद्ध व् ताजी हवा में गहरे श्वास-प्रश्वास नाड़ी शोधन
ध्यान:
मन को एकाग्र करते हुए सुखासन में बैठकर प्रातः सांय 10-10 मिनट ध्यान का नियमित अभ्यास करे।
वर्जित :
कपालभाति, उडिड्यांन बंध , नौलि , कुंजल, सूर्य नमस्कार कठिन आसनो का अभ्यास न करे तथा जिन क्रियाओ को करने से पीड़ा अथवा तनाव की अनुभूति हो उनका अभ्यास न करे।
प्रसूति के लगभग एक माह के पश्चात
- सामान्य प्रसूति के पश्चात भुजगासन, उत्तानपादासन, कोणासन, ताड़ासन, उध्र्व हस्तोत्तानासन तथा शवासन जैसे आसानी से किये जाने वाले आसन
- नाड़ी शोधन प्राणायाम किन्तु आवश्यक होने पर सभी प्रकार के प्राणायाम
- ध्यान या योग निद्रा
गर्भावस्था एवं सामान्य प्रसव के लिए प्राकृतिक चिकित्सा संबंधी सुझाव
उपचार :- प्रात: काल टहलना १/२ घंटा
- ठंडा कटिस्नान
- पेट पर मिटटी की पट्टी
- सूर्यस्नान
भोजन:
हल्का एवं सात्विक शाकाहारी भोजन ले। प्रचुर मात्रा में ताजे मौसमी फलों एवं हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करे।
प्रसूति के पश्चात
उपचार :- प्रात : काल टहलना १/२ घंटा
- सूर्यनमस्कार
- शरीर की हल्की मालिश
हल्का एवं सात्विक शाकाहारी भोजन ले। प्रचुर मात्रा में ताजे मौसमी फलो एवं हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करे।
गर्भवती स्त्रियाँ एवं दूध पिलाने वाली माताए अपने आहार का चुनाव निम्न तालिका में से कर सकती है -
१. सब्जियाँ :- सभी पत्तेदार सब्जियाँ, लौकी, तरोई, परवल , टिंडा, शलजम, चुकंदर, गाजर, खीरा, पालक, टमाटर आदि
२. अनाज :- बिना मालिश किया हुआ चावल , चोकर सहित आटा
३. मीठे पदार्थ :- शहद , गुड़
४. अंकुरित अन्न :- मुंग, मोंठ , गेंहू, अल्फाल्फा, मूंगफली तथा मेथी
५. सूखे फल एवं मेवे : - खजूर, अंजीर, मुनक्का, किशमिश, काजू, बादाम, अखरोट
६. ताजे फल :- मौसम के ताजे एवं पके हुए रसदार फल जैसे - अमरुद, नासपाती, सेब , केला , चीकू , मौसमी, संतरा आदि।
७. फलो का रस : - ताजे फलो जैसे सेब , गाजर, मौसमी, संतरा आदि का रस
८. सुप :- पालक, गाजर, टमाटर, चुकंदर तथा धनिया आदि को मिलाकर अथवा अलग-अलग तैयार किया गया सुप
९. अन्य :- नींबू का पानी , छाछ, मटठा , नारियल का पानी आदि।
गर्भवती स्त्री के लिए आहार चर्या का प्रारूप
नाश्ता 7 से 8 बजे :- मौसमी फल - सेब, नाशपाती, चीकू, केला, अमरुद एवं अंजीर/अंकुरित मुंग, गेंहू , अल्फाल्फा, मुगफली, खजूर/पालक का सुप।
भोजन 11 से 12 बजे : - मोटे आटे की रोटी, कम तेल मसाले की हरी सब्जियाँ, मुंग की दाल/ताज़ा मक्खन / हरी सब्जियों का सुप /आंवले + हरे धनिये की चटनी।
सांय 3 से 4 बजे : मौसमी फल सवेरे की तरह या गाजर का रस /प्राकृतिक चाय
भोजन 6 से 7 बजे : मोटे आटे की रोटी , कम तेल मसाले की हरी सब्जियाँ , सलाद, या गेंहू का दलिया + हरी सब्जी/दही/हरी सब्जियों का सुप। लोगो का
वर्जित आहार : चाय, कॉफी , चीनी/बूरा , मैदे से बनी चीज़े, गरम मसाले , तली भुनी चीज़े, अण्डा , मांस आदि का प्रयोग न करे।
सुपाच्य आहार : पनीर, सूखे मेवे बादाम, काजू, अखरोट तथा मूंगफली आदि को आवश्यकतानुसार अपने आहार में सम्मिलित करना चाहिए। उपर्युक्त आहार तालिका में चिकित्सक की सलाह से आवश्यक परिवर्तन किये जा सकते है। जब भी आवश्यक हो अपने चिकित्सक की सलाह अवश्य लेते रहे।
गर्भावस्था के दौरान पालन किये जाने योग्य अन्य सुझाव
१. गर्भावस्था के दौरान स्वाध्याय एवं आशावादी विचारो का मनन करते हुए आध्यात्मिक चिंतन एवं महापुरषो के जीवन का पठन पाठन करना चाहिए एवं प्रसन्नचित रहना चाहिए।२. गर्भवती स्त्री को ईर्ष्या , क्रोध, राग द्धेष एवं कामुकता से दूर रहना चहिये। कुसंग को त्याग कर अच्छे लोगो का संग करते हुए चित को निर्मल एवं शांत रखना चाहिए।
३. अपने शयन कक्ष में अच्छे चित्र लगाने चाहिए। इसका सकारात्मक असर आने वाले शिशु पर पड़ता है।
४. गर्भवती स्त्री का आहार पोषक , संतुलित और सात्विक होना चाहिए। उस आहार निर्धारण में निम्नलिखित बातो का ध्यान रखना चाहिए :
- माता के लिए आवश्यक पोषक तत्व
- गर्भस्थ शिशु के विकास एवं वृद्धि के लिए आवश्यक पोषक तत्व
- माता के गर्भाशय , स्तन, एवं गर्भजल के विकास के लिए आवश्यक पोषण
- प्रसवकाल तथा प्रसव के उपरांत दुग्ध निर्माण के लिए आवश्यक पोषण तत्व
६. अत्यधिक तनाव, विषाद से दूर रहते हुए मन पर बुरे एवं हिंसक प्रभाव डालने वाले चित्रों को देखने से बचना चाहिए।
७. गर्भवती स्त्री को पर्याप्त मात्रा में पानी अवश्य पीना चाहिए।
८. सायंकाल के भोजन के पश्चात आधा घंटा टहलना चाहिए।
इस लेख का उदेश्य गर्भवती एवं दुग्ध पिलाने वाली माताओ को योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा संबंधी सुझावों से अवगत कराना है। इसमें दी गयी योग प्रक्रियाओ का अभ्यास किसी प्रशिक्षित योग चिकित्सक की देखरेख एवं मार्गदर्शन में किया जाना चाहिए। अधिक जानकारी के लिए अपने योग चिकित्सक से सम्पर्क करे।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें