वैदिक+पंचगव्य घृत बनाने की विधि
वैदिक+पंचगव्य घृत बनाने की विधि
सबसे पहले भारतीय नश्ल की "गौ माता" का दूध लेते हैं और फिर उसमे निम्न औषधियां डालते हैं -
👉शंखपुष्पी
👉ब्राह्मी बूंटी
👉सतावरी
👉अश्वगन्धा जड़
👉निमगिलोय
👉पुनर्नवा
फिर उस दूध को मिटी की हांडी में डालकर उसको गोबर के उपलों पर गर्म रखते हैं शुबह 9 बजे से पहले-
और उसको फिर शाम को 6 -7 बजे उतार कर मिटी बिलोने में
दही जमाने के लिये रख देते हैं -
और सुबह ब्रह्ममहूर्त यानि 4 से 6 बजे के बीच लकड़ी की मथानी से बिलोकर उसका मखन एक छोटी हांडी में निकाल कर रख लेते हैं -
फिर उस हांडी को जिसमे ये मखन है-
उसमे श्याम तुलसी के कुछ पत्र डालते हैं ,
क्यों की दूध में तुलसी का सेवन आयुर्वेद में निषेध बताया है -
फिर उस हांडी में मखन को बिलकुल मन्द उपलों के अग्नि पर गर्म करते हैं ,
इस दौरान तीन भाग हो जाते हैं --
एक ऊपर घृत के जो जिसको हम अपनी भाषा में छछेडू बोलते हैं-
उसको अलग निकाल ले और घृत बिच में हैं उसको अलग करें लस्सी से -
अब एक बार फिर उस घृत को हम हांडी में डालकर दोबारा गर्म करते हैं ताकि लस्सी न रह जाये
साथीयो ये एक भाग हो गया घृत का--
जिसको हम वैदिक घृत (हर्बल घृत) बोलते हैं -
अब इस वैदिक घृत को फिर पंचगव्य घृत कैसे बनाते हैं
सबसे पहले इस घृत को जब हम गर्म करेंगे उसमे नम्बर
1⃣ पर हम गाय के "गोबर रस" डालते हैं-
और उसको मन्द गोबर उपलों पर गर्म करके उस रस को जलाते हैं -
गोबर रस जलने के बाद उसमे फिर नम्बर
2⃣ पर हम उसमे गौ मूत्र डालते हैं और उसको भी मन्द अग्नि उस घृत में जलाते हैं -
उसके बाद उसमे हम नम्बर
3⃣ पर "दूध"डालते हैं गाय का और
उसको गौ घृत जलाते हैं मन्द अग्नि मन्द अग्नि पर -
और अंत में इसमें नम्बर
4⃣ पर हम "दही" डालते हैं
और फिर उसको भी मन्द अग्नि मे उस गौ घृत में जलाते हैं ।
मित्रो इन सब प्रोशेष के बाद जो
अंत में जो घृत ही शेष बचता है उसको हम पंचगव्य घृत बोलते हैं
लाभ -इस घृत से गले से ऊपर के सभी रोग ठीक होते हैं -
जैसे -
👉 मिर्गी आना
👉लकवे में काम करता है
👉नजला चाहे कितना पुराना हो ठीक होता है
👉जड़ते हुवे बालों को रोकता है
👉 अनिंद्रा में लाभकारी
👉 स्मरण शक्ति को बढ़ाता है
👉खर्राटें रोकता है
👉 कान के फटे पर्दे में बहुत हद तक काम करता है
👉आँखों से चस्मा हटाता है
👉ब्रेन हेमरेज में ये लाभ करता है
सबसे पहले भारतीय नश्ल की "गौ माता" का दूध लेते हैं और फिर उसमे निम्न औषधियां डालते हैं -
👉शंखपुष्पी
👉ब्राह्मी बूंटी
👉सतावरी
👉अश्वगन्धा जड़
👉निमगिलोय
👉पुनर्नवा
फिर उस दूध को मिटी की हांडी में डालकर उसको गोबर के उपलों पर गर्म रखते हैं शुबह 9 बजे से पहले-
और उसको फिर शाम को 6 -7 बजे उतार कर मिटी बिलोने में
दही जमाने के लिये रख देते हैं -
और सुबह ब्रह्ममहूर्त यानि 4 से 6 बजे के बीच लकड़ी की मथानी से बिलोकर उसका मखन एक छोटी हांडी में निकाल कर रख लेते हैं -
फिर उस हांडी को जिसमे ये मखन है-
उसमे श्याम तुलसी के कुछ पत्र डालते हैं ,
क्यों की दूध में तुलसी का सेवन आयुर्वेद में निषेध बताया है -
फिर उस हांडी में मखन को बिलकुल मन्द उपलों के अग्नि पर गर्म करते हैं ,
इस दौरान तीन भाग हो जाते हैं --
एक ऊपर घृत के जो जिसको हम अपनी भाषा में छछेडू बोलते हैं-
उसको अलग निकाल ले और घृत बिच में हैं उसको अलग करें लस्सी से -
अब एक बार फिर उस घृत को हम हांडी में डालकर दोबारा गर्म करते हैं ताकि लस्सी न रह जाये
साथीयो ये एक भाग हो गया घृत का--
जिसको हम वैदिक घृत (हर्बल घृत) बोलते हैं -
अब इस वैदिक घृत को फिर पंचगव्य घृत कैसे बनाते हैं
सबसे पहले इस घृत को जब हम गर्म करेंगे उसमे नम्बर
1⃣ पर हम गाय के "गोबर रस" डालते हैं-
और उसको मन्द गोबर उपलों पर गर्म करके उस रस को जलाते हैं -
गोबर रस जलने के बाद उसमे फिर नम्बर
2⃣ पर हम उसमे गौ मूत्र डालते हैं और उसको भी मन्द अग्नि उस घृत में जलाते हैं -
उसके बाद उसमे हम नम्बर
3⃣ पर "दूध"डालते हैं गाय का और
उसको गौ घृत जलाते हैं मन्द अग्नि मन्द अग्नि पर -
और अंत में इसमें नम्बर
4⃣ पर हम "दही" डालते हैं
और फिर उसको भी मन्द अग्नि मे उस गौ घृत में जलाते हैं ।
मित्रो इन सब प्रोशेष के बाद जो
अंत में जो घृत ही शेष बचता है उसको हम पंचगव्य घृत बोलते हैं
लाभ -इस घृत से गले से ऊपर के सभी रोग ठीक होते हैं -
जैसे -
👉 मिर्गी आना
👉लकवे में काम करता है
👉नजला चाहे कितना पुराना हो ठीक होता है
👉जड़ते हुवे बालों को रोकता है
👉 अनिंद्रा में लाभकारी
👉 स्मरण शक्ति को बढ़ाता है
👉खर्राटें रोकता है
👉 कान के फटे पर्दे में बहुत हद तक काम करता है
👉आँखों से चस्मा हटाता है
👉ब्रेन हेमरेज में ये लाभ करता है
Thank you sir
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