नाभि भ्रंश

========नाभि भ्रंश==============
यह आधुनिक चिकित्सकों के अनुसार कोई रोग नहीं है किन्तु यह सर्वज्ञात है कि रोग न होते हुए भी ऐसी पीड़ा है जिसे भुक्तभोगी ही जानता है. इसे नाभि टलना, नाभिच्युति, धरण डिगना, घुण्डी सरकना आदि अन्य नामों से भी जाना जाता है============?===========
गर्भावस्था के दौरान अम्बलाइकल कॉर्ड द्वारा माँ से बच्चे को पोषण मिलता है. जन्म के पश्चात यह नाल काट दी जाती है. आधुनिक शास्त्र में इसके पश्चात इसका कोई महत्व नहीं होता ।
यौगिक आचार्यों के अनुसार नाभि शरीर का गुरूत्वीय केन्द्र है. हाथ से दबा कर महसूस करने पर नाभिस्थल पर घड़ी के समान धड़कन सुनाई देती है ।
=========नाभि टलना===========
नाभि के स्वस्थान से किंचित मात्र भी हटने से सामान्य स्वस्थावस्था प्रभावित हो जाती है. नाभि, उदरावयव, औदर्य पेशी (Rectus Abdominus), की स्वस्थिति (alignment) में गड़बड़ होने को नाभिभ्रंश कहा जा सकता है. आयुर्वेदानुसार द्वादश प्राण स्थानों में से नाभि एक है. नाभि टलने में नाभि, नाभिस्थ तंत्रिका, उदर पेशियाँ, कनेक्टिव टिश्यू व आयुर्वेदोक्त प्राण प्रभावित हो सकते हैं. हांलाकि नाभि टलने का कोई वैज्ञानिक आधार न मिलने के कारण आधुनिक चिकित्सा विज्ञान नाभि हटना जैसे किसी रोग का अस्तित्व नहीं मानता. लेकिन रोगियों की पीड़ा व उपचार इसे एक व्याधि के रूप में स्थापित करते हैं=================
=============कारण============
धरण डिगने के कई कारण हो सकते हैं जैसे- दुर्बल व्यक्ति, वजन उठाना, साहस से अधिक प्रयास करना, पैर में झटका लगना, पैर खड्डे में पड़ना, ताकत से बढकर कसरत करना, पेड़-मकान आदि से गिर पड़ना, पेट में लगना, उबड़ खाबड़ वाहन की सवारी, कूद कूद कर चलना, पेट मसलना, बेतरतीब अंग संचालन-अंगड़ाई, जीर्ण उदर रोग, आम रोग, ग्रहणी आदि रोग आदि तथा इनके अतिरिक्त भी कई ज्ञात अज्ञात कारण हो सकते है=======================
============भेद===============
वैसे तो इसका कोई भेद नहीं, फिर भी नाभि टलने की दिशा के आधार पर इसके तीन प्रकार मान सकते हैं ।
१. नाभि का ऊपर की ओर टलना- इसमें अन्य लक्षणों के साथ प्रायः कब्ज हो जाती है.
२. नाभि का नीचे की ओर टलना- इसमें अन्य लक्षणों सहित प्रायः अतिसार हो जाता है.
३. नाभि का दांये या बांये टलना- इसमें मिश्रित लक्षण प्रदर्शित होते हैं ।
==========लक्षण===============
मोटे तौर पर नाभि हटने पर पेट गड़बड़ा जाता है. कब्ज या अतिसार, अजीर्ण, मंदाग्नि, पेट में गुड़गुड़ाहट, बेचैनी, कमर-पिण्डलियों में दर्द, सुस्ती, कमजोरी, हल्का बुखार, भूख न लगना, बदन दर्द, भारीपन आदि लक्षण होते हैं. अधिक समय तक रहने या बार बार होने से दुर्बलता, यकृत दौर्बल्य, रक्ताल्पता, कामला, जलोदर आदि रोग होने की सम्भावना भी बढ जाती है ।
=========रोग निदान============
कई बार उपरोक्त लक्षण किसी पेट के रोग, संग्रहणी अतिसार आदि में भी होते हैं, अतः रोग विनिश्चय करना आवश्यक होता है. इस हेतु निम्न दो विधियां अधिक प्रचलन में हैं ।
१. परीक्षण हेतु रोगी को खाली पेट बुलायें. पीठ के बल समतल सतह पर लिटा दें. पैर घुटनों पर से मोड़ कर रखें. दोनो हाथ साइड में फैला दें. अब चिकित्सक अपने दांये हाथ का अँगूठा रोगी की नाभि पर बिल्कुल मध्य में टिकायें तथा दबाव डालें. अँगूठे पर धड़कन महसूस होती है. नाभि टलने की स्थिति में धड़कन कुछ बांये-दांये, ऊपर-नीचे प्रतीत होगी ।
२. रोगी को पीठ के बल सीधा लिटा कर किसी सूत के धागे से नाभि से क्रमशः दोनो स्तनाग्र की लम्बाई नापें. दोनो समान होनी चाहिए. जिस ओर की लम्बाई कम हो नाभि उसी तरफ हटी हुई माननी चाहिऐ ।
========औषध चिकित्सा=========
=========युक्ति चिकित्सा=========
१. रोगी को नकछिंकनी या कट्फल सुंघाने से छींक आकर कभी कभी नाभि बैठ जाती है।
२. रोगी के पेट पर नाभि स्वस्थान पर वैक्यूम कप द्वारा लाई जा सकती है, इसके लिए अनुभव आवश्यक है ।
३. रोगी को समतल लिटा कर पैर घुटनों से मोड़ कर नितम्ब से सटा कर रखें. फिर नाभि पर एक ५-७ लीटर पानी भरा घड़ा केन्द्र में सावधानी से टिकायें. सहन होने तक रखें फिर हटा दें. ऐसा तीन चार बार करें ।
४. रोगी को चित लिटा कर नाभि किस ओर हटी है परीक्षण कर लें. अब जिस ओर हटी हो उसी ओर के पैर के अँगूठे को तीन चार बार कुछ झटका दें ।
५. रोगी के पेट पर तेल चुपड़ कर युक्ति पूर्वक नाभि को स्थान पर खिसकायें. अनुभवी से ही करवायें, अन्यथा हानि भी हो सकती है ।
६. उड़द के आटे में मेथी, अजवायन, हींग, लहसुन मिलाकर गूँथकर रोटी बेल कर एक ओर से सेक लें. फिर नाभि पर तेल चुपड़ कर सुहाती गर्म ही सिकी तरफ से रख कर कपड़ा बाँध दें. आधा घण्टा लेटे रहें ।
========योग-आसन चिकित्सा=====
धनुरासन, पश्चिमोत्तानासन, उत्तानपादासन, भुजंगासन, अपान मुद्रा आदि का प्रशिक्षित निर्देशन में अभ्यास करें ।
=========टोटका===============
नाभि टलने का निश्चय हो जाने पर रोगी को पीठ के बल सीधा लिटा कर रोगी के पैरों की तरफ एक दूसरे को आंशिक काटते हुए दो पूर्ण वृत्त गोले फर्श/ जमीन पर चॉक से बनायें. रोगी के दांये पैर की ओर वाले गोले में मिलान लिखें तथा बांये पैर की ओर वाले गोले में शैतान लिखें. अब जो व्यक्ति या चिकित्सक यह क्रिया कर रहा है वह अपने बांये पैर के जूते/चप्पल हाथ में लेकर उस से पहले २१ बार मिलान पर फिर ११ बार शैतान पर जोर से मारें. पुनः पूर्व में बताई गई धागे से नाप विधि से नाप कर देखें. नाभि बराबर हो जाएगी. यदि एक बार में न हो तो अगले दिन पुनः करें ।
यह प्रचलित ग्रामीण विधि है, किन्तु एक अन्य ग्रुप में मुझसे पहले ही एक सज्जन उल्लेखित कर चुके हैं, अतः मैं उनका धन्यवाद ज्ञापित करना आवश्यक समझता हूँ ।
यदि रोगी बार बार नाभि हटने से ग्रस्त हो तो नाभि टलने को स्वस्थान पर लाने के बाद रोगी के पैर के अँगूठे पर ताँबे के तार का छल्ला बाँध दे ।
========= आयुर्वेदिक औषध=======
नाभि ठीक करने के बाद सिर्फ़ पांच दिन दवाई देना है । === लिवर 52 - दो चम्मच सुबह - शाम खाली पेट लें ।
चित्रकादि गुटिका - 2 सुबह - शाम खाना खाने के बाद पानी से लें ।

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