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कैसा भी बवासीर हो

* 15 ग्राम काले तिल पिसकर, 10-15 ग्राम मख्खन के साथ मिलाकर सुबह सुबह खा लो । कैसा भी बवासीर हो मिट जाता है । * जिनको बवासीर है, शौच वाली जगह से जिनको खून आता है, वे २ नींबू का रस निकालकर, छान लें और एनिमा के साधन से शौच वाली जगह से एनिमा द्वारा नींबू का रस लें और १० मिनट सिकोड़ कर सोये रहें । इतने में वो नींबू गर्मी खींच लेगा और शौच होगा । हफ्ते में ३-४ बार करें.......कैसा भी बवासीर हो......... नीम के पके हुए फल को छाया में सुखाकर इसके फल का चूर्ण बना लें। 5 ग्राम चूर्ण सुबह जल के साथ खाने से बवासीर रोग ठीक होता है। लगभग 50 मिलीलीटर नीम का तेल, कच्ची फिटकरी 3 ग्राम, चौकिया सुहागा 3 ग्राम को बारीक पीस लें। शौच के बाद इस लेप को उंगली से गुदा के भीतर तक लगाने से कुछ ही दिनों में बवासीर के मस्से मिट जाते हैं। नीम के बीज, बकायन की सूखी गिरी, छोटी हरड़, शुद्ध रसौत 50-50 ग्राम, घी में भूनी हींग 30 ग्राम को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर उसमें 50 ग्राम बीज निकली हुई मुनक्का को घोंटकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें, 1 से 4 गोली को दिन में 2 बार बकरी के दूध के साथ या ताजे लेने से बवासीर में लाभ मिलता हैं, ...

ठंड की इन 10 प्रॉब्लम्स मे बहुत उपयोगी व रामबाण है, सरसो तेल

1.सरसों के तेल में दर्दनाशक गुण हैं, यदि कान का दर्द सताए तो दो बूंद गुनगुना सरसों का तेल कान में टपकाएं, चाहे तो इसमें दो चार कलियां लहसुन की भी मिला सकते हैं। 2.सरसों का तेल सौंदर्य बढ़ाता है, रूप निखारने के लिए गौरा रंग चाहने वाले बेसन हल्दी में सरसो का तेल डालकर लगाएं। 3. सरसों का तेल दिल को चुस्त-दुरुस्त रखता है, कुछ समय पूर्व एम्स, हावर्ड स्कूल ऑफ मेडिकल साइंस व सेंट जॉन मेडिकल कॉलेज में एक साथ शोध की गई जिससे पता चला कि सरसों का तेल खाने वाले 71 प्रतिशत लोगों को दिल की बीमारी नहीं हुई। 4.यदि गठिया से परेशान हों तो सरसों के तेल में कपूर मिलाकर मालिश करने से दर्द में राहत मिलती है। 5. यदि कमर दर्द हो तो सरसों के तेल में थोड़ी हींग, अजवाइन और लहसुन मिलाकर गर्म कर लें और उसे कमर पर लगाएं, पिंडलियों का दर्द हो तो सरसो के तेल को गुनगुना करके मालिश करना चाहिए। 6. नवजात शिशु और प्रसूता दोनों की मालिश करने के लिए सरसों का तेल सबसे अच्छा रहता है। सरसों के तेल से मालिश करने के बाद नहाने से शिशु को सर्दी होने का खतरा नहीं रहता, अपितु यदि बच्चे का सर्दी लग गई हो तो सरसों के...

अश्वगंधा पौधा एक फायदे अनेक!

अश्वगंधा एक झाड़ीदार रोमयुक्त पौधा है। अश्वगंधा कहने को एक पौधा है, लेकिन यह बहुवर्षीय पौधा पौष्टिक जड़ों से युक्त है। अश्वगंधा के ब ीज, फल एवं छाल का विभिन्न रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है। अश्वगंधा के पौधे में ऐसे औषधीय गुण होते हैं जो वजन घटाने, लकवा आदि से लड़ने में आपकी मदद करते हैं। ये पौधा बुखार, संक्रमण और सूजन आदि शारीरिक समस्याओं के लिए उपयोग में लाए जाते हैं। इसमें हार्ट अटैक के खतरे को कम करने की क्षमता मौजूद होती है। यह मधुमेह से ग्रसित लोगों में मोतियाबिंद जैसी समस्या पर भी लगाम लगाता है। आइए जानें अंश्वगंधा पौधें के अनेक फायदों के बारे में- निरोग करें शरीर: अश्वगंधा पौधे की पत्तियां त्वचा रोग, शरीर की सूजन एवं शरीर पर पड़े घाव और जख्म भरने जैसी समस्या से लेकर बहुत सी बीमारियों में भी बहुत उपयोगी है। अश्व‍गंधा के पौधे को पीसकर लेप बनाकर लगाने से शरीर की सूजन, शरीर की किसी विकृत ग्रंथि और किसी भी तरह के फुंसी-फोड़े को हटाने में काम आती है। अश्व‍गंधा पौधे की पत्तियों को घी, शहद पीपल इत्यादि के साथ मिलाकर सेवन करने से शरीर निरोग रहता है। चर्म रोग से निजात दिल...

नोनी (मोरिंडा सिट्रोफोलिया) किसी बीमारी का इलाज़ तो नहीं लेकिन इसके सेवन से कोई भी बीमारी नही बच सकती, चाहे वो एड्स हो या कैंसर।

नोनी (मोरिंडा सिट्रोफोलिया) किसी बीमारी का इलाज़ तो नहीं लेकिन इसके सेवन से कोई भी बीमारी नही बच सकती, चाहे वो एड्स हो या कैंसर। नोनी फल आम लोगों के लिए जितना गुमनाम है, सेहत के लिए उतना ही फायदेमंद। नोनी के रूप में वैज्ञानिकों को एक ऐसी संजीवनी हाथ लगी है। मधुमेह, अस्थमा, गठिया, दिल की बीमारी, स्त्रियों की बीमारिया, नपुंसकता एवम् बांझपन सहित कई बीमारियों के इलाज में रामबाण साबित हो रहा है। पान-मसाला, गुटखा, तंबाकू की जिसे आदत है वे अगर नोनी खायेंगे या उसका जूस पिएंगे तो उनकी यह आदतें छूट जाएँगी और केन्सर भी नही होगा। ताजा शोध के मुताबिक नोनी फल कैंसर व लाइलाज एड्स जैसी खतरनाक बीमारियों में भी कारगर साबित हो रहा है। भारत में वर्ल्ड नोनी रिसर्च फाउंडेशन सहित कई शोध संस्थान शोध कर रहे हैं। नोनी के इन रहस्यमयी गुणों का खुलासा भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में एक सेमिनार में हुआ। कृषि वैज्ञानिक नोनी को मानव स्वास्थ्य के लिए प्रकृति की अनमोल देन बता रहे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार समुद्र तटीय इलाकों में तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, गुजरात, अंडमान निकोबार,...

श्वेतप्रदर चिकित्सा :

श्वेतप्रदर अक्सर स्त्रियों की योनि से सफेद, लेसदार, झाग के रूप में बदबूदार पानी सा निकलता है, जिसको श्वेतप्रदर कहते हैं। इस रोग में स्त्री का शरीर बिल्कुल कमजोर हो जाता है। कारण : स्त्री का मासिकधर्म आने पर शुरुआती 3 दिनों में नहाने से उनको श्वेतप्रदर (योनि में से सफेद पानी आना) का रोग हो जाता है। इसके अलावा यह रोग ज्यादा संभोग क्रिया करने से, मन में हर समय सेक्स के बारे में विचार रखने से, भोजन में तेल, खटाई, लालमिर्च, प्याज, अंडा, मांस आदि का ज्यादा सेवन करने से, गुप्त अंगों की ठीक प्रकार से सफाई न करने से भी हो जाता है। चिकित्सा : आंवला- लगभग 25 ग्राम आंवला को रात में 250 मिलीलीटर पानी में भिगोकर रख दें और सुबह उठने के बाद छान लें। इस छने हुए पानी में लगभग 12-12 ग्राम शहद और खांड मिलाकर पीने से श्वेतप्रदर रोग में लाभ होता है। गूलर- श्वेतप्रदर रोग में स्त्री को लगभग 6 ग्राम गूलर या आधा ग्राम रसौत की सुबह और शाम को पानी के साथ फंकी लेने से लाभ होता है। अगर इन चीजों को मक्खन के साथ लिया जाए तो यह रोग जल्दी दूर हो जाता है। चूहे की मींगनी का तेल- लगभग 250 ग्राम चूहे की मेंगनी को 4...